प्रदोष-लक्ष्मी-पूजन - Pradosh Laxmi Pujan
सायं-काल यथा-शक्ति पूजा-सामग्री को
एकत्र कर पवित्र आसन पर बैठे। आचमन कर दाएँ हाथ में जल-अक्षत-पुष्प लेकर
संकल्प करे। यथा- ॐ अस्य रात्रौ आश्विन-मासे-शुक्ल-पक्षे पूर्णिमायां तिथौ
अमुक-गोत्रस्य अमुक-शर्मा (वर्मा या दासः) मम
सकल-दुःख-दारिद्र्य-निरास-पूर्वक लक्ष्मी-इन्द्र-कुबेर-पूजनं अहं
करिष्यामि (करिष्ये।
इसके बाद पूजा-स्थान के द्वार
पर एक अष्ट-दल-कमल बनाए और उस पर पुष्प-अक्षत चढ़ाकर ‘द्वार-देवताभ्यो
नमः’ कहकर पूजा करे। फिर गन्ध-पुष्प-अक्षत छोड़कर - ॐ
द्वारोर्ध्व-भित्तिभ्यो नमः’ कहे। ‘ॐ ब्रह्मणे नमः, ॐ वास्तु-पुरुषाय नमः’
से पुनः पुष्पाक्षत चढ़ाए। तब ‘ॐ भूर्भुवः स्वः हव्य-वाहन, इहागच्छ इह
तिष्ठ’ कहकर ‘अग्नि का आवाहन’ करे। पुनः थोड़ा-सा जल, अक्षत, पुष्प लेकर
- ”इदं पाद्यं, इदं अनुलेपनं, इदं अक्षतं, एतानि गन्ध-पुष्पाणि, इदं
धूपं, इदं दीपं, इदं ताम्बूलं, इदं नैवेद्यं, एते
यव-चूर्ण-घृत-शालि-तण्डुलाः, इदमाचमनीयं, एष पुष्पाञ्जलीः। ॐ हव्य-वाहनाय
नमः।’ कहकर अर्पित करे।
अब ‘चन्द्र-पूजा’ हेतु पहले
चन्द्र-देव का आवाहन करे- “भो पूर्णेन्दो, इहागच्छ इह तिष्ठ, एषोऽर्घ्यः
इन्दवे नमः। एतानि पाद्यानि ॐ पूर्णेन्दवे नमः।’ कहकर थोड़ा-सा गन्धाक्षत,
पुष्प जल में डालकर ‘पाद्य’ के लिए अर्पित करे। फिर ‘इदं अनुलेपनं,
इदं अक्षतं, एतानि गन्ध-पुष्पाणि, इदं धूपं, इदं दीपं’ और इसके बाद दूध और
खीर लेकर ‘इदं नैवेद्यं’ कहते हुए पूजा-सामग्री को चन्द्र-देव को अर्पित
करे। तब इदं ताम्बूलं, इदं दक्षिणा-द्रव्यं, प्रदक्षिणां समर्पयामि, कहकर
भक्ति-सहित प्रणाम करे।
फिर भार्या सहित रुद्र का पूजन
करे। पहले आवाहन करे - ॐ सभार्य-रुद्र, इहागच्छ इह तिष्ठ’ कहकर फुजा-स्थान
पर पुष्प और अक्षत छोड़े। फिर ‘एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि’ एवं ‘ॐ
सभार्य-रुद्राय नमः’ कहकर गन्ध-पुष्प चढ़ाए। ‘एते माष-तिल-तण्डुलाः ॐ
सभार्य-रुद्राय नमः’ कहकर पूर्वोक्त विधि से धूप-दीप आदि अर्पित करे।
तब ‘स्कन्दाय नमः’ कहकर
स्कन्द-देव की पूजा करे। ”इदं पाद्यं, इदं अनुलेपनं, इदं अक्षतं, एतानि
गन्ध-पुष्पाणि, इदं धूपं, इदं दीपं, इदं ताम्बूलं, इदं दक्षिणा-द्रव्यं,
एते माष-तिल-तण्डुलाः ॐ स्कन्दाय नमः’ कहकर उपलब्ध पूजा-सामग्री अर्पित
करे।
पुनः नन्दीश्वर की पूजा करने
हेतु - ॐ नन्दीश्वर-मुने, इहागच्छ, इह तिष्ठ, एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि।
एते माष-तिल-तण्डुलाः ॐ नन्दीशऽवर-मुनये नमः’ कहकर उपलब्ध पूजा-सामग्री
अर्पित करे।
इसके बाद ‘ॐ गोमति, इहागच्छ,
इह तिष्ठ, एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि, ॐ गोमत्यै नमः’ से पूर्व की भाँति
पूजा करे।
‘ॐ सुरभि इहागच्छ, इह तिष्ठ,
एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि। ॐ सुरभ्यै नमः’ से पूजा-सामग्री अर्पित करे।
‘ॐ निकुम्भ इहागच्छ, इह
तिष्ठ, एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि। ॐ निकुम्भाय नमः’ से पूजा कर
माष-तिल-तण्डुल (उड़द-तिल-चावल) दे। इसी प्रकार छाग-वाहन (अग्नि-देव),
मेष-वाहन (वरुण), हस्ति-वाहन (विनायक), अश्व-वाहन (रेवन्त) का आवाहन कर
पूजा करे। प्रत्येक को उड़द-तिल-चावल का नैवेद्य अर्पित करे।
अब दाएँ हाथ में पुष्प-अक्षत
लेकर भगवती लक्ष्मी का ध्यान करे-
ॐ या सा पूद्मासनस्था,
विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः,
स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः।
मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु
गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
उक्त प्रकार ध्यान कर
‘आवाहनादि-पूजन’ करे-
“ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्मि,
इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
फिर लक्ष्मी की प्रतिमा अथवा
यन्त्र की पूजा करे। पहले स्नान कराए-
ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः,
हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ
लक्ष्म्यै नमः।।
तदन्तर ‘इदमनुलिपनं, इदं
सिन्दूरं, इदमक्षतं’ से पूजन कर लक्ष्मी देवी को पुष्प-माला और पुष्प
अर्पित करे-
‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः,
अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।।
ॐ
लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’
इसके बाद ‘इदं रक्त-वस्त्रं,
इदं विल्व-पत्रं, इदं माल्यं, एष धूपं, एष दीपं, एतानि
नाना-विधि-नैवेद्यानि, इसमाचनीयं। एतानि
नाना-विध-पक्वान्न-सहित-नारिकेलोदक-सहित-नाना-फलानि, ताम्बूलानि, आचमनीयं
समर्पयामि’ से पूजा करे।
अन्त में लक्ष्मी जी को तीन
पुष्पाञ्जलियाँ प्रदान करे-
“ॐ नमस्ते सर्व-भूतानां,
वरदाऽसि हरि-प्रिये, या गतिस्त्वत्-प्रपन्नानां,
सा मे भूयात् त्वद्-दर्शनात्।
एष पुष्पाञ्जलिः।। ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।।”
लक्ष्मी का पूजन के बाद
‘इन्द्र-देव’ का ‘ॐ इन्द्राय नमः’ कहकर एवं ‘कुबेर का ‘ॐ कुबेराय नमः’
कहकर गन्धादि से पूजन करे। फिर हाथों में पुष्प लेकर ‘ॐ इन्द्राय नमः’,
‘ॐ कुबेराय नमः’ कहकर प्रणाम करे-
“ॐ धनदाय नमस्तुभ्यं,
निधि-पद्माधिपाय च। भवन्तु त्वत्-प्रसादान्ने, धन-धान्यादि-सम्पदः।।”
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