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Tuesday, October 25, 2011
नवग्रह दोष निवारण सिद्ध मंत्र - Navagraha Dosh Nivaran Sidh Mantra
इन्तेर्विएव में सफलता का मंत्र - Mantra to get success in Interview
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Monday, October 24, 2011
दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि - Dipawali Laxmi Pujan Vidhi
दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि - Dipawali Laxmi Pujan Vidhi
कार्तिक मास की अमावस्या का
दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे
रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि कार्तिक
अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे
थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर
खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और
कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के
दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते
हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर
में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका
पूरा साल कैसा रहेगा।
दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन मुहूर्त
घर में लक्ष्मी का वास हो, सुख-समृद्धि आये,
घर में लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाए, इसके लिये दीपावली का पूजन शुभ
मुहूर्त में करें तथा लाभ उठाएँ।
26.10.2011 को
दीपावली है.
26.10.2011 को
शाम 6 बज कर 49 मिनट से 8 बज कर 45 मिनट तक का मुहूर्त सबसे उत्तम है. यह
वृष राशि स्थिर लग्न है.
पुनः रात्रि 1बज कर 17 मिनट से 3 बज कर 31 मिनट
के बीच सिंहराशि स्थिर लग्न में पूजा कर लेना फलप्रद है.
लक्ष्मी पूजा का स्थान ईशान कोण
मत्स्य पुराण के अनुसार अनेक
दीपकों से लक्ष्मीजी की आरती करने को दीपावली कहते हैं। धन-वैभव और
सौभाग्य प्राप्ति के लिए दीपावली की रात्रि को लक्ष्मीपूजन के लिए श्रेष्ठ
माना गया है। श्रीमहालक्ष्मी पूजन, मंत्रजाप, पाठ तंत्रादि साधन के लिए
प्रदोष, निशीथ, महानिशीथ काल व साधनाकाल अनुष्ठानानुसार अलग-अलग महत्व
रखते हैं। पूजा के लिए पूजास्थल तैयार करते समय दिशाओं का भी उचित समन्वय
रखना जरूरी है।
पूजा का स्थान ईशान कोण
(उत्तर-पूर्व दिशा) की ओर बनाना शुभ है। इस दिशा के स्वामी भगवान शिव हैं,
जो ज्ञान एवं विद्या के अधिष्ठाता हैं। पूजास्थल पूर्व या उत्तर दिशा की
ओर भी बनाया जा सकता है। पूजास्थल को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगें। ये
रंग शांति, पवित्रता और आध्यात्मिक प्रगति के प्रतीक हैं। देवी-देवताओं
की मूर्तियां तथा चित्र पूर्व-उत्तर दीवार पर इस प्रकार रखें कि उनका मुख
दक्षिण या पश्चिम दिशा की तरफ रहे।
पूजा कलश पूर्व दिशा में
उत्तरी छोर के समीप रखा जाए तथा हवनकुंड या यज्ञवेदी का स्थान पूजास्थल के
आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) की ओर रहना चाहिए। लक्ष्मीजी की पूजा के
दीपक उत्तर दिशा की ओर रखे जाते हैं। पूजा, साधना आदि के लिए उत्तर या
पूर्व या पूर्व-उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना उत्तम है। तंत्रसाधना के
लिए पश्चिम दिशा की तरफ मुख रखा जाता है।
दीपावली में दक्षिणवर्ती शंख
का विशेष महत्व है। इस शंख को विजय, सुख-समृद्धि व लक्ष्मीजी का साक्षात
प्रतीक माना गया है। दक्षिणवर्ती शंख को पूजा में इस प्रकार रखें कि इसकी
पूंछ उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहे। श्रीयंत्र लक्ष्मीजी का प्रिय है। इसकी
स्थापना उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए।
लक्ष्मीजी के मंत्रों का जाप
स्फटिक व कमलगट्टे की माला से किया जाता है। इसका स्थान पूजास्थल के उत्तर
की ओर होना चाहिए। श्री आद्यशंकराचार्य द्वारा विरचित ‘श्री कनकधारा
स्रोत’ का पाठ वास्तुदोषों को दूर करता है। दीपावली के दिन श्रीलक्ष्मी
पूजन के पश्चात श्रीकनकधारा स्रोत का पाठ किया जाए तो घर की नकारात्मक
ऊर्जा का नाश हो जाने से सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
पूजन विधानः दीपावली पर माँ
लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे
दीपावली परम्प रम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ
दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की
प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार
में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के
बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया
जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी
पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा
के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते
हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के
देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु
भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व
रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।
दीपावली पूजन सामग्री
धूप बत्ती (अगरबत्ती), चंद, कपूर, केसर, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, सौभाग्यद्रव्य- मेहँदी, चूड़ी, काजल, पायजेब,बिछुड़ी आदि आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते (नगर्वेल के पान), पुष्पमाला, कमलगट्टे, धनिया खड़ा, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगाजल, शहद (मधु), शकर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतुफल (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि), नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए
इत्यादि), इलायची (छोटी), लौंग, मौली, इत्र की शीशी, तुलसी दल, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर
के पत्ते), औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि), लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, सरस्वती का चित्र, चाँदी का सिक्का, लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश (ताँबे या मिट्टी का), सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूँ), लेखनी (कलम), बही-खाता, स्याही की दवात, तुला (तराजू), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि, खील-बताशे, अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र.
विधिः दीपावली के दिन दीपकों
की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे
दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन
सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर,
गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी
पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें।
पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर
कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द
प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक
चौमुखा, छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का
काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।
दीपावली पूजन कैसे करें
प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण
करें।
अब निम्न संकल्प से दिनभर उपवास रहें-
मम
सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादि-
सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं
गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्यर्थं
इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।
संध्या के समय पुनः स्नान करें।
लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई
करके दीवार को चूने अथवा गेरू से पोतकर लक्ष्मीजी का चित्र बनाएं।
(लक्ष्मीजी का छायाचित्र भी लगाया जा सकता है।)
भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, कदली फल, पापड़
तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं।
लक्ष्मीजी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस
पर मौली बाँधें।
इस पर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित
करें।
फिर गणेशजी को तिलक कर पूजा करें।
अब चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।
इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।
फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल,
धूप आदि से विधिवत पूजन करें।
पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें।
पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर
रखें।
एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र
से लक्ष्मीजी का पूजन करें-
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे
भूयात्वदर्चनात॥
इस मंत्र से इंद्र का ध्यान करें-
ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः।
शतयज्ञाधिपो देवस्तमा इंद्राय ते नमः॥
इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥
इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा
लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
तत्पश्चात इच्छानुसार घर की बहू-बेटियों को
आशीष और उपहार दें।
लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का विशेष
महत्व है।
इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक
जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा
सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर
लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें।
उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।
दीपकों का काजल सभी स्त्री-पुरुष आँखों में
लगाएं।
फिर रात्रि जागरण कर गोपाल सहस्रनाम पाठ करें।
इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाएँ नहीं।
बड़े-बुजुर्गों के चरणों की वंदना करें।
व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी
विधिपूर्वक पूजा करें।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के उपरान्त चूने
या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप) पर
कंकू से तिलक करें। (हालांकि आजकल घरों मे ये सभी चीजें मौजूद नहीं है
लेकिन भारत के गाँवों में और छोटे कस्बों में आज भी इन सभी चीजों का विशेष
महत्व है क्योंकि जीवन और भोजन का आधार ये ही हैं)
दूसरे दिन प्रातःकाल चार बजे उठकर पुराने छाज
में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें 'लक्ष्मी-लक्ष्मी
आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ'।
लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घर के तुलसी के गमले
में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें और
अपने पड़ोसियों के घर भी दीपक रखकर आएं।
मंत्र-पुष्पांजलि :
( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को
बोलें) :-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि
प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः
सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं
वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो
वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं
समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब
हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-
क्षमा प्रार्थना :
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम् परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः
प्रसीदतुः'
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)
विसर्जन :
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की
प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए
निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
लक्ष्मीजी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय...
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ
जय...
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ
जय...
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ
जय...
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय...
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय...
(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं
आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)
परमात्मा की पूजा में सबसे ज्यादा महत्व है
भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को
नहीं जो़ड़ा गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है-
'पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या
प्रयच्छति।
तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥'
'पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को)
भक्तिपूर्वक अर्पण करता है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के अर्पण किए हुए
पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।'
भावना से अर्पण की हुई अल्प वस्तु को भी भगवान
सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूजा में वस्तु का नहीं, भाव का महत्व है।
परंतु मानव जब इतनी भावावस्था में न रहकर
विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल
पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे पूजन
में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले कल्पेश हैं।
पत्र यानी पत्ता। भगवान भोग के नहीं, भाव के
भूखे हैं। भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को
स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया हैं! अल्प मूल्य की
वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य बन जाती
हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली
के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश नहीं किया गया होगा न!
पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने
खुद ही 'छन्दांसि यस्य पर्णानि' कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह
ज्ञानपूर्वक, समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार दिया जाए, ऐसा यहां
अपेक्षित है। संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर
पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती
है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना ही नहीं,
आगे चलकर इस पूजाकांड के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण
होती है।
धन त्रयोदशी - धनतेरस - Dhanteras
धन त्रयोदशी
धन त्रयोदशी – इस दिन धन के देवता
कुबेर और मृत्यु देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्व है । इसी दिन देवताओं
के वैद्य धनवंतरि ऋषि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे । अतः इस
दिन धनवंतरी जयंती मनायी जाती है । निरोग रहते हेतु उनका पूजन किया जाता
है । इस दिन अपने सामथ्र्य अनुसार किसी भी रुप मे चादी एवं अन्य धातु
खरीदना अति शुभ है । धन संपति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के
पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज ( जो अकाल मृत्यु से
करता है ) के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें ।
कार्तिक मास की कृष्ण
त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। आज के दिन घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर रखा
जाता है। आज के दिन नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन
यमराज और भगवान धनवन्तरि की पूजा का महत्व है।
रुप चौदस , नरक चतुर्दशी एवं
हनुमान जयंतीः इसे छोटी दीपावली भी कहते है । इस दिन रुप और सौदर्य प्रदान
करने वाले देवता श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है ।
इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और राक्षस
बारासुर द्वारा बंदी बनायी गयी सोलह हजार एक सौ कन्याओं को मुक्ति दिलायी
थी । अतः नरक चतुर्दशी मनायी जाती है । दूसरो अर्थात गंदगी है उसका अंत
जरुरी है । इस दिन अपने घर की सफाई अवश्य करें । रुप और सौंदर्य प्राप्ति
हेतु इस दिन शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करें । अंजली पुत्र बजरंगबलि हनुमान
का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में हुआ था अतः हनुमान जयंती
भी इसी दिन मनायी जाती है । सांय काल उनका पूजन एवं सुंदर कांड का पाठ
अवश्य करें ।
प्रदोष-लक्ष्मी-पूजन - Pradosh Laxmi Pujan
प्रदोष-लक्ष्मी-पूजन - Pradosh Laxmi Pujan
सायं-काल यथा-शक्ति पूजा-सामग्री को
एकत्र कर पवित्र आसन पर बैठे। आचमन कर दाएँ हाथ में जल-अक्षत-पुष्प लेकर
संकल्प करे। यथा- ॐ अस्य रात्रौ आश्विन-मासे-शुक्ल-पक्षे पूर्णिमायां तिथौ
अमुक-गोत्रस्य अमुक-शर्मा (वर्मा या दासः) मम
सकल-दुःख-दारिद्र्य-निरास-पूर्वक लक्ष्मी-इन्द्र-कुबेर-पूजनं अहं
करिष्यामि (करिष्ये।
इसके बाद पूजा-स्थान के द्वार
पर एक अष्ट-दल-कमल बनाए और उस पर पुष्प-अक्षत चढ़ाकर ‘द्वार-देवताभ्यो
नमः’ कहकर पूजा करे। फिर गन्ध-पुष्प-अक्षत छोड़कर - ॐ
द्वारोर्ध्व-भित्तिभ्यो नमः’ कहे। ‘ॐ ब्रह्मणे नमः, ॐ वास्तु-पुरुषाय नमः’
से पुनः पुष्पाक्षत चढ़ाए। तब ‘ॐ भूर्भुवः स्वः हव्य-वाहन, इहागच्छ इह
तिष्ठ’ कहकर ‘अग्नि का आवाहन’ करे। पुनः थोड़ा-सा जल, अक्षत, पुष्प लेकर
- ”इदं पाद्यं, इदं अनुलेपनं, इदं अक्षतं, एतानि गन्ध-पुष्पाणि, इदं
धूपं, इदं दीपं, इदं ताम्बूलं, इदं नैवेद्यं, एते
यव-चूर्ण-घृत-शालि-तण्डुलाः, इदमाचमनीयं, एष पुष्पाञ्जलीः। ॐ हव्य-वाहनाय
नमः।’ कहकर अर्पित करे।
अब ‘चन्द्र-पूजा’ हेतु पहले
चन्द्र-देव का आवाहन करे- “भो पूर्णेन्दो, इहागच्छ इह तिष्ठ, एषोऽर्घ्यः
इन्दवे नमः। एतानि पाद्यानि ॐ पूर्णेन्दवे नमः।’ कहकर थोड़ा-सा गन्धाक्षत,
पुष्प जल में डालकर ‘पाद्य’ के लिए अर्पित करे। फिर ‘इदं अनुलेपनं,
इदं अक्षतं, एतानि गन्ध-पुष्पाणि, इदं धूपं, इदं दीपं’ और इसके बाद दूध और
खीर लेकर ‘इदं नैवेद्यं’ कहते हुए पूजा-सामग्री को चन्द्र-देव को अर्पित
करे। तब इदं ताम्बूलं, इदं दक्षिणा-द्रव्यं, प्रदक्षिणां समर्पयामि, कहकर
भक्ति-सहित प्रणाम करे।
फिर भार्या सहित रुद्र का पूजन
करे। पहले आवाहन करे - ॐ सभार्य-रुद्र, इहागच्छ इह तिष्ठ’ कहकर फुजा-स्थान
पर पुष्प और अक्षत छोड़े। फिर ‘एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि’ एवं ‘ॐ
सभार्य-रुद्राय नमः’ कहकर गन्ध-पुष्प चढ़ाए। ‘एते माष-तिल-तण्डुलाः ॐ
सभार्य-रुद्राय नमः’ कहकर पूर्वोक्त विधि से धूप-दीप आदि अर्पित करे।
तब ‘स्कन्दाय नमः’ कहकर
स्कन्द-देव की पूजा करे। ”इदं पाद्यं, इदं अनुलेपनं, इदं अक्षतं, एतानि
गन्ध-पुष्पाणि, इदं धूपं, इदं दीपं, इदं ताम्बूलं, इदं दक्षिणा-द्रव्यं,
एते माष-तिल-तण्डुलाः ॐ स्कन्दाय नमः’ कहकर उपलब्ध पूजा-सामग्री अर्पित
करे।
पुनः नन्दीश्वर की पूजा करने
हेतु - ॐ नन्दीश्वर-मुने, इहागच्छ, इह तिष्ठ, एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि।
एते माष-तिल-तण्डुलाः ॐ नन्दीशऽवर-मुनये नमः’ कहकर उपलब्ध पूजा-सामग्री
अर्पित करे।
इसके बाद ‘ॐ गोमति, इहागच्छ,
इह तिष्ठ, एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि, ॐ गोमत्यै नमः’ से पूर्व की भाँति
पूजा करे।
‘ॐ सुरभि इहागच्छ, इह तिष्ठ,
एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि। ॐ सुरभ्यै नमः’ से पूजा-सामग्री अर्पित करे।
‘ॐ निकुम्भ इहागच्छ, इह
तिष्ठ, एतानि पाद्यादीनि समर्पयामि। ॐ निकुम्भाय नमः’ से पूजा कर
माष-तिल-तण्डुल (उड़द-तिल-चावल) दे। इसी प्रकार छाग-वाहन (अग्नि-देव),
मेष-वाहन (वरुण), हस्ति-वाहन (विनायक), अश्व-वाहन (रेवन्त) का आवाहन कर
पूजा करे। प्रत्येक को उड़द-तिल-चावल का नैवेद्य अर्पित करे।
अब दाएँ हाथ में पुष्प-अक्षत
लेकर भगवती लक्ष्मी का ध्यान करे-
ॐ या सा पूद्मासनस्था,
विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः,
स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः।
मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु
गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
उक्त प्रकार ध्यान कर
‘आवाहनादि-पूजन’ करे-
“ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्मि,
इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
फिर लक्ष्मी की प्रतिमा अथवा
यन्त्र की पूजा करे। पहले स्नान कराए-
ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः,
हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ
लक्ष्म्यै नमः।।
तदन्तर ‘इदमनुलिपनं, इदं
सिन्दूरं, इदमक्षतं’ से पूजन कर लक्ष्मी देवी को पुष्प-माला और पुष्प
अर्पित करे-
‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः,
अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।।
ॐ
लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’
इसके बाद ‘इदं रक्त-वस्त्रं,
इदं विल्व-पत्रं, इदं माल्यं, एष धूपं, एष दीपं, एतानि
नाना-विधि-नैवेद्यानि, इसमाचनीयं। एतानि
नाना-विध-पक्वान्न-सहित-नारिकेलोदक-सहित-नाना-फलानि, ताम्बूलानि, आचमनीयं
समर्पयामि’ से पूजा करे।
अन्त में लक्ष्मी जी को तीन
पुष्पाञ्जलियाँ प्रदान करे-
“ॐ नमस्ते सर्व-भूतानां,
वरदाऽसि हरि-प्रिये, या गतिस्त्वत्-प्रपन्नानां,
सा मे भूयात् त्वद्-दर्शनात्।
एष पुष्पाञ्जलिः।। ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।।”
लक्ष्मी का पूजन के बाद
‘इन्द्र-देव’ का ‘ॐ इन्द्राय नमः’ कहकर एवं ‘कुबेर का ‘ॐ कुबेराय नमः’
कहकर गन्धादि से पूजन करे। फिर हाथों में पुष्प लेकर ‘ॐ इन्द्राय नमः’,
‘ॐ कुबेराय नमः’ कहकर प्रणाम करे-
“ॐ धनदाय नमस्तुभ्यं,
निधि-पद्माधिपाय च। भवन्तु त्वत्-प्रसादान्ने, धन-धान्यादि-सम्पदः।।”
धनतेरस - Dhanteras
धनतेरस - Dhanteras
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।
प्रथा
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
कथा
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राज इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है । यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वंतरि
धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
!! Wish you all a Happy Dhanteras !!
From,
Kalpesh Dave.
धनतेरस पर लक्ष्मी पूजन केसे करे - How to Perform the Laxmi Puja on Dhanteras
धनतेरस के शुभ मुर्हूत में ऐसे होंगी लक्ष्मी प्रसन्न:-
How to Perform the Laxmi Puja on Dhanteras
भारतीय
संस्कृति और धर्म में शंख का बड़ा महत्व है। विष्णु के चार आयुधो में शंख
को भी एक स्थान मिला है। मन्दिरों में आरती के समय शंखध्वनि का विधान है।
हर पुजा में शंख का महत्व है। यूं तो शंख की किसी भी शुभ मूहूर्त में पूजा
की जा सकती है, लेकिन यदि धनत्रयोदशी के दिन इसकी पूजा की जाए तो दरिद्रता
निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए
तंत्र के अनुसार यह सबसे सरल प्रयोग है।यह दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में
रहता है, वहां लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। यदि आप भी चाहते हैं कि
आपके घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास हो तो ये प्रयोग जरुर करें
ऊं
श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नम:………..उपरोक्त मंत्र का पाठ कर
लाल कपड़े पर चांदी या सोने के आधार पर शंख को रख दें। आधार रखने के पूर्व
चावल और गुलाब के फूल रखे। यदि आधार न हो तो चावल और गुलाब पुष्पों (लाल
रंग) के ऊपर ही शंख स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप
करें- “मंत्र – ऊं श्रीं”.
अ- 10 से 12 बजे के बीच उपरोक्त प्रकार से सवा माह पूजन करने से-लक्ष्मी
प्राप्ति।
ब- 12 बजे से 3 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से यश कीर्ति
प्राप्ति, वृद्धि।
स- 3 से 6 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से-संतान
प्राप्तिइसके अन्य प्रयोग निम्न हैक. सवा महा पूजन के बाद इसी रंग की गाय
के दूध से स्नान कराओ तो बन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती हो जाती है।
ख. पूजा के
पश्चात शंख को लाल रंग के वस्त्र मं लपेटकर तिजोरी में रख दो तो खुशहाली
आती है।
ग. शंख को लाल वस्त्र से ढककर व्यापारिक संस्थान में रख दो तो दिन
दूनी रात चौगुनी वृद्धि और लाभ होता है।
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