दैनिक भास्कर समूह ने जब मुझसे पूछा कि क्या आप हमारे जल सत्याग्रह अभियान से जुड़ना चाहेंगे तो मुझे फैसला करने में एक पल भी नहीं लगा क्योंकि आज हम पानी के संकट से जूझ रहे हैं और कल महासंकट से जूझेंगे।
कहीं भी बसने से पहले आदमी पानी का इंतजाम करता है, लेकिन तेजी से हो रहे शहरीकरण, बदलती लाइफ स्टाइल व पानी के प्रति हमारी लापरवाही के कारण पानी के स्रोत लगातार कम होते जा रहे हैं। नदियां नालों में बदली हैं, झरने सूख गए हैं, बावड़ियां-पोखर अतिक्रमण के दायरे में आ गए हैं।
यहां तक कि औसत बारिश (१क्५ सेमी) भी कम हो गई है। चेरापूंजी में जहां कुछ साल पहले सबसे ज्यादा बारिश होती थी, आज जंगल काटे जाने के कारण यह इलाका बूंद-बूंद के लिए तरस रहा है।
ऐसे में पानी की एक-एक बूंद आपके लिए जरूरी है। पानी की फिजूलखर्ची कर हम अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं, अपने बच्चों का भविष्य बिगाड़ रहे हैं। बोतलबंद पानी के व्यापार का दौर आ चुका है। शायद वह दिन दूर नहीं, जब पानी राशन की दुकान में बिकेगा। पानी की फिजूलखर्ची अब भविष्य का संकट नहीं है।
आफत आने वाली नहीं, आ चुकी है। पानी की बर्बादी रोकना एक बड़ी चुनौती है। या तो आप इस चुनौती का सामना अभी से कीजिए या महासंकट के लिए तैयार हो जाइए। यह एक मौका भी है आपके लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के वास्ते मिसाल खड़ी करने का।
अपनी आदतों में छोटे-छोटे बदलावों से आप 15 फीसदी तक पानी बचा सकते हैं। नहाने, हाथ व कपड़े धोने, फर्श व गाड़ी साफ करने, बगीचे में पानी देने जैसी मामूली आदतों में बदलाव से 15 फीसदी पानी बचाने के लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सकता है। और, यह आपको ही बचाना है। इस जल प्रबंधन में सरकार और शासन की कोई भूमिका नहीं है।
19वीं सदी के अंत तक जल प्रबंधन और संरक्षण समाज की साझा जिम्मेदारी था, शासकों की नहीं। लोग पानी सहेजते ही नहीं, बचाते भी थे। जल के कीमती खजाने की रक्षा का काम एक बार फिर आपको अपने हाथ में लेना होगा।
अगर आप यह संकल्प ले लें कि मैं आज से हर रोज अपनी एक आदत बदलूंगा, जिससे 15 फीसदी पानी बचा सकूं तो मेरा मानना है कि आप अपने परिवार व बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेंगे। यह प्रेरणा समाज में भी जोर पकड़ेगी। लेकिन याद रखिए, यह शुरुआत आपसे ही होगी। यह चुनौती आपको ही स्वीकार करनी होगी। यह मौका आप नहीं गंवा सकते
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