भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी ही गणेश चतुर्थी
कहलाती है। श्री गणेशजी विघ्न विनाशक हैं। इन्हें देवसमाज में सर्वोच्च
स्थान प्राप्त है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का
जन्म हुआ था। श्री गणेशजी बुद्धि के देवता हैं। गणेशजी का वाहन चूहा है।
ऋद्धि तथा सिद्धि इनकी दो पत्नियाँ हैं। इनका सर्वप्रिय भोग मोदक (लड्डू)
है। इस दिन रात्रि में चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग जाता है।
गणेश चतुर्थी व्रत
कैसे करे
* इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएँ।* पश्चात 'मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये' मंत्र से संकल्प लें।* इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाएँ।* गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुँह पर कोरा कपड़ा बाँधकर उस पर स्थापित करें।* पश्चात मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से उनका पूजन करें।* इसके बाद आरती करें। आरती के लिए क्लिक करें। * फिर दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाएँ। इनमें से पाँच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बाँट दें।
* इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएँ।* पश्चात 'मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये' मंत्र से संकल्प लें।* इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाएँ।* गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुँह पर कोरा कपड़ा बाँधकर उस पर स्थापित करें।* पश्चात मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से उनका पूजन करें।* इसके बाद आरती करें। आरती के लिए क्लिक करें। * फिर दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाएँ। इनमें से पाँच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बाँट दें।
गणेश चतुर्थी व्रत में
सावधानिया
* गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जानी चाहिए।* पूजनोपरांत नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए। नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है कि जहाँ तक संभव हो, इस दिन (भाद्रपद चतुर्थी को) चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है। यदि सावधानी बरतने के बावजूद चंद्र दर्शन हो ही जाएँ तो फिर स्यमन्तक की कथा सुनने से कलंक का प्रभाव नहीं रहता।
* गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जानी चाहिए।* पूजनोपरांत नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए। नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है कि जहाँ तक संभव हो, इस दिन (भाद्रपद चतुर्थी को) चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है। यदि सावधानी बरतने के बावजूद चंद्र दर्शन हो ही जाएँ तो फिर स्यमन्तक की कथा सुनने से कलंक का प्रभाव नहीं रहता।
गणेश चतुर्थी व्रत फल
वस्त्र से ढंका हुआ कलश, दक्षिणा तथा गणेश प्रतिमा आचार्य को समर्पित करके गणेशजी के विसर्जन का उत्तम विधान माना गया है। गणेशजी का यह पूजन करने से बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है।
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