Monday, February 20, 2012

महामृत्युंजय कवच


महामृत्युंजय कवच का पाठ करने से जपकर्ता की देह सुरक्षित होती है। जिस प्रकार सैनिक की रक्षा उसके द्वारा पहना गया कवच करता है उसी प्रकार साधक की रक्षा यह कवच करता है। इस कवच को लिखकर गले में धारण करने से शत्रु परास्त होता है। इसका प्रातः, दोपहर व सायं तीनों काल में जप करने से सभी सुख प्राप्त होते हैं। इसके धारण मात्र से किसी शत्रु द्वारा कराए गए तांत्रिक अभिचारों का अंत हो जाता है। धन के इच्छुक को धन, संतान के इच्छुक को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

भैरव उवाच
श्रृणुष्व परमेशानि कवचं मन्मुखोदितम्‌ ।
महामृत्युंजयाख्यस्य न देयं परमाद्भुतम्‌  ।।

यं धृत्वा यं पठित्वा च श्रुत्वा च कवचोत्तमम्‌ ।
त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि  ।।

तदेववर्णयिष्यामि तव प्रीत्यावरानने ।
तथापि परमं तत्वं न दातव्यं दुरात्मने  ।।


बाई हाथ (Right Hand) मे जल लेकर तम्बपात्र मे जल छोडे !
 विनियोगः
अस्य श्री महामृत्युंजयकवचस्य भैरव ऋषिः ।
गायत्रीछन्दः मृत्युंजयरुद्रो महादेवो देवता  ।।
ॐ बीजं जूं शक्तिः। सः कीलकम्‌।
हौमितितत्वं व चतुर्वर्गसाधने विनियोगः  ।।

चंद्रमंडलमध्यस्थे रुद्रभाले विचिन्त्यते ।
तत्रस्थं चिन्तयेत्‌ साध्यं मृत्युमाप्नोपि जीवित  ।।

ॐ जूं सः ह्रौं शिरं पातु देवो मृत्युंजयो मम ।
ॐ श्रीं शिवो ललाटं च ॐ ह्रौं भ्रु वो सदाशिव:  ।।

नीलकंठो वतान्नेत्रे कपर्दी मे वतच्छुती ।
त्रिलोचनो वताद् गण्डौ नासा मे त्रिपुरान्तकः  ।।

मुखं पीयूषघटमृदौष्ठौ मे कृत्तिकाम्बरः ।
हनुं मे हाटकेशनो मुखं बटुक-भैरव : ।।

कन्धरां कालमथनो गलं गण प्रियोऽवतु।
स्कन्दौ स्कन्दपिता पातु हस्तौ मे गिरिशोऽवतु  ।।

नखान्‌ मे गिरिजानाथः पायादंगलि संयुतान्‌ ।
स्तनौ तारापतिः पातु वक्षः पशुपतिर्मम  ।।
कुक्षि कुबेर-वरदः पार्श्वौ मे मारशासनः ।
सर्वः पातु तथा नाभिं शूली पृष्ठं ममावतु  ।।

शिश्नं मे शंकरः पातु गुह्यं गुह्यक-वल्लभः ।
कटिं कालान्तकः पायादूरुमेऽन्धकघातनः  ।।

जागरूकोऽवताज्जानू जंघे मे कालभैरवः ।
गुल्फो पायाज्जटाधारी पादौ मृत्युंजयोऽवतु  ।।

पादादिमूर्धपर्यन्तमघोरः पातु मां सदा ।
शिरसः पादपर्यन्तं सद्योजातो ममावतु  ।।

रक्षाहीनं नामहीनं वपुः पातु मृतेश्वरः ।
पूर्वे बलविकरणो दक्षिणे कालशासनः  ।।
पश्चिमे पार्वतीनाथो ह्युत्तरे मां मनोन्मनः ।
ऐशान्यामीश्वरः पायादाग्नेय्यामग्निलोचनः  ।।

नैऋत्याँ शम्भुरव्यान्मां वायव्याँ वायुवाहनः ।
उर्ध्वे बलप्रमथनः पाताले परमेश्वरः  ।।

दशदिक्षु सदा पातु महामृत्युंजयश्च माम्‌।
रणे राजकुले द्यूते विषमे प्राणसंशये  ।।

पाया दों जूं महारुद्रो देव-देवो दशाक्षरः।
प्रभाते पातु मां ब्रह्मा मध्याह्ने भैरवोऽवतु  ।।

सर्व तत्‌ प्रशमं याति मृत्युंजय-प्रसादतः ।
धनं पुत्रान्‌ सुखं लक्ष्मीमारोग्यं सर्वसम्पदः  ।।

प्राप्नोति साधकाः सद्यो देवि सत्यं न संशयः ।
इतीदं कवचं पुण्यं महामृत्युंजयस्य तु  ।।

गोप्यं सिद्धिप्रदं गुह्यं गोपनीयं स्वयोनिवत्‌ ।
। इति रुद्रयामले तन्त्रे देवीरहस्ये मृत्युंजयपंचांगे मृत्युंजयकवचं संपूर्णम्‌ ।


महामृत्युंजय कवच का पाठ करने से जपकर्ता की देह सुरक्षित होती है। जिस प्रकार सैनिक की रक्षा उसके द्वारा पहना गया कवच करता है उसी प्रकार साधक की रक्षा यह कवच करता है। इस कवच को लिखकर गले में धारण करने से शत्रु परास्त होता है। इसका प्रातः, दोपहर व सायं तीनों काल में जप करने से सभी सुख प्राप्त होते हैं। इसके धारण मात्र से किसी शत्रु द्वारा कराए गए तांत्रिक अभिचारों का अंत हो जाता है। धन के इच्छुक को धन, संतान के इच्छुक को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

No comments:

Post a Comment