Monday, February 20, 2012

श्रावण मास में शिव पूजा - Shiv Upasana

श्रावण मास में शिव पूजा - शिव उपासना 


श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने से मास का नाम श्रावण हुआ और वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। 

लेकिन श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है। इस वर्ष श्रावण मास 16 जुलाई से आरंभ हो रहा है।

जो भक्त पूरे महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रावण में ही समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव आराधना करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है।

अमोघ फलदाई सोमवार व्रत----

शास्त्रों और पुराणों में श्रावण सोमवार व्रत को अमोघ फलदाई कहा गया है। विवाहित महिलाओं को श्रावण सोमवार का व्रत करने से परिवार में खुशियां, समृद्घि और सम्मान प्राप्त होता है, जबकि पुरूषों को इस व्रत से कार्य-व्यवसाय में उन्नति, शैक्षणिक गतिविधियों में सफलता और आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है। अविवाहित लड़कियां यदि श्रावण के प्रत्येक सोमवार को शिव परिवार का विधि-विधान से पूजन करती हैं तो उन्हें अच्छा घर और वर मिलता है।

शिव गायत्री मंत्र से होंगे दोष निवारण ---

जातक को यदि जन्म पत्रिका में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु तथा शनि से पीड़ा है या ग्रहण योग है या फिर मानसिक रूप से विचलित रहते हैं, उन्हें भगवान शिव की गायत्री मंत्र से आराधना करना चाहिए। क्योंकि कालसर्प, पितृदोष के कारण राहु-केतु को पाप-पुण्य संचित करने और शनिदेव द्वारा दंड दिलाने की व्यवस्था भगवान शिव के आदेश पर ही होती है। इससे सीधा अर्थ निकलता है कि इन ग्रहों के कष्टों से पीडित व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करे तो महादेवजी उस जातक की पीड़ा दूर कर सुख पहुंचाते हैं। भगवान शिव की शास्त्रों में कई प्रकार की आराधना वर्णित है लेकिन शिव गायत्री मंत्र का पाठ सरल एवं अत्यंत प्रभावशील है।

मंत्र निम्न है- ---

ॐ तत्पुरूषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र प्रचोदयात।

इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते हैं। इसी के साथ सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे। शिवजी के सामने घी का दीपक लगाएं। जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें, पितृदोष एवं कालसर्प दोष वाले व्यक्ति को यह मंत्र प्रतिदिन करना चाहिए। सामान्य व्यक्ति भी करे तो भविष्य में कष्ट नहीं आएगा। इस जाप से मानसिक शांति, यश, समृद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है। शिव की कृपा का प्रसाद मिलता है।

भोलेनाथ को यूं रिझाएं-----

1 बिल्वपत्रं शिवार्पणम्-----
भगवान शिव को जो पत्र-पुष्प प्रिय हैं उनमें बिल्वपत्र प्रमुख है। श्रावण मास में बिल्वपत्र को शिव पर अर्पित करने से धन-संपदा, ऎश्वर्य प्राप्त होता है। लिंग पुराणानुसार "बिल्व पत्रे स्थिता लक्ष्मी देवी लक्षण संयुक्ता" अर्थात बिल्व पत्र में लक्ष्मी का वास माना जाता है। बिल्व वृक्ष को श्री वृक्ष भी माना जाता है। ऋग्वेदोक्त श्री सूक्त के अनुसार मां लक्ष्मी के तपोबल से बिल्वपत्र उत्पन्न हुआ, जो दरिद्रता को दूर करने वाला है। यह न केवल बाहरी बल्कि भीतरी दरिद्रता को भी दूर करने में समर्थ है। भगवान शिव की पूजा में पुष्पों का अभाव होने पर बिल्वपत्र चढ़ाने से भी शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं। बिल्वपत्र को हमेशा शिवलिंग पर उल्टा चढ़ाना चाहिए। श्रावण मास में सहस्त्र बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढ़ाने से शीघ्र ही समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

2 रूद्राक्ष धारण करें-----

पौराणिक मान्यतानुसार भगवान शंकर के नेत्रों से आंसू की बूंदे टपकी, जो पृथ्वी पर गिरकर रूद्राक्ष के रूप में परिवर्तित हो गई। शंकर (रूद्र) की आंखों (अश्रु) से उत्पन्न होने के कारण ही इस वृक्ष के फल को रूद्राक्ष कहा गया। रूद्राक्ष भगवान शंकर को अत्यधिक प्रिय हैं। इसीलिए मान्यता है कि रूद्राक्ष में स्वयं भगवान शंकर का निवास है। रूद्राक्ष को धारण करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आयुर्वेद के अनुसार रूद्राक्ष कफ निवारक व वायुविकार नाशक भी है। रूद्राक्ष का उपयोग ग्रहों के कुप्रभावों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। जिस प्रकार रत्न व उपरत्न से ग्रहों के दोष दूर होते हैं उसी प्रकार रूद्राक्षों से भी ग्रहों के दोषों का निवारण संभव होता है।

3 पारद शिवलिंग की करें आराधना---

पारे को विशेष प्रक्रियाओं द्वारा शोधित करके उसे ठोस बनाकर शिवलिंग बनाया जाता है। करोड़ों शिवलिंगों की पूजा से जो फल प्राप्त होता है उससे भी अधिक गुनाफल पारद शिवलिंग की पूजा करने से प्राप्त होता है। गरूड़ पुराण में पारद शिवलिंग को ऎश्वर्यदायक कहा है। इसकी पूजा करने से धन, असीम ज्ञान व ऎश्वर्य प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यतानुसार रावण ने भी पारद शिवलिंग के निर्माण एवं उसकी पूजा उपासना कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। पारद शिवलिंग का निर्माण विशेष मुहूर्त में किया जाता है। श्रावण मास में पारद शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करके घर पर नित्य पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

4 कावड़ यात्रा पर जाएं----

श्रावण मास में भगवान शिव को रिझाने के लिए भक्त कावड़ यात्रा करते हैं। मान्यतानुसार पवित्र सरोवर या प्राचीन नदी के जल को लेकर पैदल चलकर शिव को रिझाने के लिए जल से अभिषेक एवं संपूर्ण श्रावण मास का व्रत करें। कावड़ लाकर भोले नाथ का जलाभिषेक करने की शुरूआत कब और कहां से हुई कुछ ठीक तरह से कहना मुश्किल है। पर यह जरूर है कि भगवान परशुराम पहले कावडिए थे, जिन्होंने गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया।

अरिष्ट नाश के लिए----

जन्म कुंडली में अष्टम भाव आयु का है। इससे भी अष्टम भाव तृतीय भाव भी आयु का स्थान है। इनसे बारहवें भाव, द्वितीय एवं सप्तम भाव दोनों मारक भाव हैं। इस भाव में स्थित ग्रह एवं भाव के स्वामी मारकेश होते हैं। इन स्थानों में स्थित कू्रर ग्रह के कारण उत्पन्न होने वाले अरिष्ट आयु में कमी, रोग आदि प्रदान करते हैं। भगवान शिव स्वयं काल हैं, जिन्होंने काल पर विजय प्राप्त की है। मृत्यु को अपने अधीन किया। इसलिए उन्हे मृत्युंजय भी कहते हैं। जिन्हें अरिष्ट व मारकेश की दशा चल रहीं हो वे भगवान शिव की आराधना करें।

नव ग्रहों की शांति के लिए शिवाभिषेक----

सूर्य- भगवान शिव पर जल से अभिषेक
चंद्र- कच्चे दूध में काले तिल डालकर अभिषेक
मंगल- गिलोए की बूटी के रस से अभिषेक
बुध- विधारा की बूटी के रस से अभिषेक
बृहस्पति- कच्चे दूध में हल्दी मिलाकर अभिषेक
शुक्र- पंचामृत से अभिषेक
शनि- गन्ने के रस से अभिषेक
राहु-केतु- भांग से अभिषेक करें।
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भोले भंडारी का प्रिय श्रावण मास---

श्रावण मास 16 जुलाई से प्रारंभ हो गया है, जो 13 अगस्त तक रहेगा। भगवान शिव को यह मास अतिप्रिय है। श्रावण मास लगते ही जहां मन में सुकून और ठंडक का अहसास होता है, वहीं धरती पर हरियाली लहराने लगती है। प्रकृति को सजा-संवरा देख वन-उपवन में मयूर नाचने लगते हैं। मेघ मल्हार गाते हैं और श्रावण के स्वागत में हर दिल में सावन के गीत गूंज उठते हैं कि सावन को आने दो...

भगवान शिव की पूजा-अर्चना का पवित्र महीना श्रावण मास शुरू हो गया है। प्रथम श्रावण सोमवार, 18 जुलाई को मनाया जाएगा। शिवालयों में अलसुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगेगी तथा बम-बम भोले से मंदिर गुंजायमान होंगे।

माना जाता है कि शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की नगरी का भार है। उसमें श्रावण मास भी अपना विशेष महत्व रखता है। इसलिए श्रावण का महीना अधिक फल देने वाला होता है।

श्रावण माह में एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है।

इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। इससे सभी प्रकार के कष्‍ट दूर होते हैं तथा मनुष्य अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकता है।

प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी।

दूसरे सोमवार को सफेद तिल्ली एक मुट्ठी।
तीसरे सोमवार को खड़े मूंग की एक मुट्ठी।
चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी।
पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाना चाहिए।
साथ ही भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए शिव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय है। श्रावण मास में शिवभक्तों द्वारा शिव पुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं जाप किया जाता है। श्रावण मास में इसके करने से अधिक फल प्राप्त होता है।

आषाढ़ में गरज-चमक के साथ बदरवा बरसते हैं तो सावन में सेरे आते हैं वहीं भादौ में लगती है बारिश की झड़ी, लेकिन व्रत-त्योहार की झड़ी श्रावण से लगेगी जो भादौ, क्वांर व कार्तिक मास तक चलेगी। माह के अन्य व्रत त्योहारों के अलावा हरियाली अमावस्या, नागपंचमी, रक्षाबंधन विशेष रूप से होंगे।
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शिव को प्रिय है रूद्राक्ष----
प्रकृति का अनमोल रत्न "रूद्राक्ष" भगवान शिव को बेहद प्रिय है। रूद्राक्ष को धारण करने से जहां मानसिक शांति, आध्यात्मिक विकास होता है वहीं स्वास्थ्य लाभ तथा भाग्योन्नति भी होती है।

एक मुखी रूद्राक्ष--- को शिव स्वरूप माना जाता है। यह अत्यंत दुर्लभ है। इसका संचालक सूर्य है। सूर्य की अनुकूलता के लिए इसे पहना जाता है। इसे किसी शुभ तिथि में सफेद धागे में पिरोकर "ॐ नम: शिवाय:" मंत्र से अभिमंत्रित कर, गले में पहनना चाहिए।

दो मुखी रूद्राक्ष--- अर्धनारीश्वर स्वरूप है। इसे लाल धागे में पिरोकर, सोमवार के दिन दाहिने हाथ में "ॐ अध्र्यनारीश्वर देवाय नम:" मंत्र का जप करते हुए बांधना चाहिए। इसको धारण करने से चंद्रमा की अनुकूलता से मानसिक शांति मिलती है।

तीन मुखी रूद्राक्ष--- का स्वामी अग्निदेवता हैं। मंगल की अनुकूलता के लिए इसे धारण करने से हीन भावना, आत्मग्लानि, भय और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। इसको लाल धागे में पिरोकर मंगलवार को "ॐ नमो नारायणाय नम:" मंत्र का जप करके पहनना चाहिए।

चार मुखी रूद्राक्ष--- का स्वामी ब्रह्मा तथा संचालक ग्रह बुध है। यह सृजनशील व्यक्तियों के लिए विशेष लाभकारी है। इसे लाल धागे में पिरोकर, बुधवार के दिन प्रात: "ॐ ब्रह्म देवाय नम:" मंत्र से अभिमंत्रित कर पहनना चाहिए।

पांच मुखी रूद्राक्ष--- शिव पुरूष रूद्र द्वारा नियंत्रित तथा बृहस्पति द्वारा संचालित है। इसके एक से तीन दाने तक लाल धागे में पिरोकर "ॐ नम: शिवाय:" मंत्र का जप करते हुए धारण करना चाहिए। यह रूद्राक्ष मानसिक तनाव से मुक्ति देता है।

छह मुखी रूद्राक्ष---- का स्वामी कार्तिकेय तथा संचालक ग्रह शुक्र है। यह रक्तचाप, दिमागी परेशानी, ह्वदयरोग आदि बीमारियों में लाभकारी है। इसके तीन दानों को लाल धागे में पिरोकर "ॐ नम: शिवाय कार्तिकेय नम:" मंत्र का जप करते हुए गले में पहनना चाहिए।

सात मुखी रूद्राक्ष--- महालक्ष्मी द्वारा नियंत्रित तथा शनि द्वारा संचालित होता है। आर्थिक, शारीरिक और मानसिक विपत्तियों से ग्रस्त लोगों द्वारा इसे धारण करना चाहिए। इसे लाल धागे में पिरोकर "ॐ श्रीं श्रीयै नम:" मंत्र का जप करते हुए गले या दाएं बाजू में पहनना चाहिए।

आठ मुखी रूद्राक्ष--- के स्वामी गणेश तथा संचालक ग्रह राहू है। इसके धारण करने से आपस में द्वेष रखने वालों का मन बदलता है और मित्रता बढ़ाता है। इसे लाल धागे में पिरोकर "ॐ गं गणपतये नम:" मंत्र का जप करते हुए धारण करें।

नौ मुखी रूद्राक्ष--- की मां दुर्गा स्वामिनी है। भैरव स्वरूप इस रूद्राक्ष का संचालक ग्रह केतु है। इसे लाल धागे में पिरोकर, सोमवार के दिन "ॐ दंु दुुर्गाय नम:" मंत्र का जप करते हुए गले में पहनना चाहिए। इसको पहनने से सहनशीलता, कर्मठता व साहस में वृद्धि होती है।

दस मुखी रूद्राक्ष--- के स्वामी दशावतारी विष्णु भगवान हैं। वास्तु दोष निवारक इस रूद्राक्ष की पूजा करने से गृह शांति होती है। इसे लाल धागे में पिरोकर रविवार को "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जप करते हुए गले या दाएं बाजू में धारण करना चाहिए।

ग्यारह मुखी रूद्राक्ष--- के अधिपति हनुमान जी हैं। यह निर्णय क्षमता बढ़ाता है। व्यापार और विदेश यात्रा में सहायक होता है। इसे एक दाने को लाल या पीले धागे में पिरोकर सोमवार को सूर्योदय से पूर्व इष्टदेव के मंत्र का जप करते हुए गले में पहनें।

बारह मुखी रूद्राक्ष---- भगवान सूर्य का प्रतिरूप है। इसके एक दाने को पीले धागे में पिरोकर सूर्योदय के समय "ॐ घृणि सूर्याय नम:" मंत्र के साथ गले में धारण करना चाहिए। इसे राजनीतिज्ञ, व्यापारी व यश चाहने वालों को पहनना चाहिए।

तेरह मुखी रूद्राक्ष---- कामदेव का प्रतिरूप है। इसे लाल या पीले धागे में पिरोकर "ॐ वज्रहस्ताय नम:" मंत्र का जप करते हुए गले में धारण करना चाहिए।

चौदह मुखी रूद्राक्ष--- का अधिपति श्री नीलकंठ है। अति दुर्लभ और परम प्रभावशाली यह रूद्राक्ष साक्षात देव मणि है। इसे लाल धागे में पिरोकर सोमवार के दिन शिवलिंग से स्पर्श करके "ॐ नम: शिवाय:" मंत्र का जप करते हुए शिव के समक्ष गले में धारण करें।

!! ॐ नमः शिवाय !! बोलो हर हर महादेव !!

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